#लोकतंत्र_में_मेरे_हालात
हालात की कहूँ तो बात ये है कि ….
जब महान हिंदुस्तान आजाद हुआ और डेमोस क्रेसी को लागू करवाया गया तब सबसे महान कार्य यह हुआ कि जिस महान मानव ने किसी को एक ढेला उठाकर नहीं मारा उसे लोकतांत्रिक तरीके से गोली मारी गई हालांकि डंडे से मारते तब मानसिकता सामंती बताया जा सकती था ।
दूसरी बात गौर करने की ये भी है वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी था ये महज बेबक्त कोसने की चीज औद्योगिक क्रांति नही थी , हाँ बन्दूक औद्योगिक क्रांति की उपज जरूर रही लेकिन दृष्टिकोण विशुद्ध वैज्ञानिक था ठीक वैसे जैसे प्राणी विज्ञान का कोई शोधछात्र आपको यह बताकर आश्चर्य में डाल दे कि सफेद चूहे लैबोरेटरी परपस से पैदा किए जाते हैं और उनको मारने के लिए क्लोरोफार्म का प्रयोग करना अधिक कष्टदायी होता है । इसके बजाए अगर सफेद चूहे के सर को एक हाथ से पकड़ा जाए और दूसरे हाथ से उसकी पूँछ को झटके से खींचकर उसे मौत की नींद मानवता के नाम पर सुलाया जाए ।
आजादी से पहले अंग्रेजों के नाम पर ऐसे ही एक मौत की तरकीब आजमाने का इल्जाम है, हालांकि इसमें मुझे शंका है क्योंकि इसमें भी ज्ञान की बात है और भारत विश्व गुरू रहा है जिसमें मुझे कोई शंका नही ।
विज्ञान और लोकतंत्र हमारी बपौती है हमारे पास लोग हैं उनके गुरू है उनके घंटाल है घंटालों के नेता है नेताओं का लोकतंत्र है जो हमको मरते दम तक प्रिय है ।
#मेरे_हालात_का_लोकतंत्र
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