सीधी बात है ! किसानों के आंदोलन के लिए मुझे कुछ कहना नहीं , एक पर जुल्म हुआ उसने अपना विरोध अपने तरीके से व्यक्त किया है ।
आंदोलन का दूसरा पहलू दबाव भी होता ही है उन्होंने अपने तरीके से बनाया है तो सत्ता भी प्रतिक्रिया यानी अपने प्रकार प्रकार का दबाव बनाएगी ।
तैयार रहे हिंसक घटनाओं की जिम्मेवारी से बचना सम्भव नहीं है , होना भी नहीं चाहिए आंदोलन और संघर्ष  के तौर तरीकों को सीखना जरूरी है ।

मुझे दया और हंसी उन झंडुबाम लिए भटके हुए नौजवानों पर आ रही है जो एक तो गांधीजी को गरियाते हैं  मगर दबी जुबान से और दूसरे जो तथाकथित सामंतों को गरियाते फिरते हैं फ़ैशनेबल जुबान से ।
अब भइया गाँधीजी वाली आंदोलन सुरक्षित एवं अहिंसात्मक तो भूल ही जाएँ सत्ता वाले और बामपंथी दोनों ही और दूसरा ये की, बामपंथ के रंगरूट जो कुलाँचे मार मार के भाव विभोर तो हो रहे, लेकिन कमोबेश ये वही किसान/सामंत [मजदूर वर्ग तो नहीं लगते मेरी मोटी बुद्धि से ] हैं  जिनसे आपको आजादी चाहिए वही जिनको सत्ता पक्ष खालिस्तानी बताती है । शर्म करें और स्थिति के काबू में आने में सहयोग करें ।

    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
जय जवान जय किसान

Leave a comment